चुपचाप सा रह जाना ,आपके मामूल क्यूँ हैँ ,
जो सब होता हो ये आपको माकूल क्यूँ हैँ
किस रँग के उतर जाने की बात करते हैँ ,
रँग देखने में भला इतने मशगूल क्यूँ हैँ
कितनी नज़्मों में हमारा ज़िक्र आया था ,
बस चंद हर्फ़ हि आपको मक़बूल क्यूँ हैँ
ये तो पाँव के निशाँ थे दौर -ऐ -सफर में , देखिए ,
फिर नज़रिये में ये रास्ते के धूल क्यूँ हैँ