Friday, August 26, 2011

अभिषेक

धरती पर आते  सूर्य किरणों का  प्रथम आवेग हूँ मैं 
रन क्षेत्र में डटे हुए किसी क्षत्रिय का तेज हूँ मैं 
लहरों  से लरते   हुए एक  नाविक का विवेक हूँ मैं 
पत्ते   से गिरते बूंदों से   माटी  का अभिषेक हूँ मैं 

किसी  कवि की  लेखनी  का पहला आलेख हूँ मैं 
मन के मरुभूमि में साहित्य की ठंडी रेत हूँ मैं 
सृष्टि की शक्ति का एक पावन उल्लेख हूँ मैं 
बालक के मुख से  माँ की ध्वनि का अभिषेक हूँ मैं 






मेरा आखिरी पैगाम ले ले!!


ए जाने वाले जाने से पहले 
मेरा आखिरी सलाम तो ले ले ..

ये वक़्त घुल न जाए सीने में मधु बनकर 
याद आयेंगे तुझे हर सांझ हर सुबह ये मंज़र... 


हम भी काफिर सा नहीं सोचेंगे खुद को कभी 
तू भी सुकून से रहेगी ,ए मेरी ज़िन्दगी ...

जुदाई तो बस ज़िन्दगी की  एक शुरुआत है  
आज तो जी भर के जी ले इसे 
ये मिलन है ,तू समझ न  मेरी जाना ..
ये  हमारे रूह की बात है ...

है पाक ये  दिल ,तू है इसकी धड़कन 
ज़िन्दगी में होंगे तेरे संग , मेरे गीतों  के सरगम   
पर आज तो जाना  मेरा   
आखिरी पैगाम ले ले ...

मेरा आखिरी पैगाम ले ले ....

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...