क्या छोड़ दूँ अब सफ़र ,कम रसद देख कर
आसमाँ नहीं छुआ जाता ,अपना कद देख कर
पंछी कहाँ रुकते हैं कभी सरहद देख कर
हम हैरान है उनकी दिल्लगी और हद देख कर
इक करार सा आया था तब मदद देख कर
टूटा है दिल कुछ और ही मकसद देख कर
बागवाँ तो खुश है बाग़ को गदगद देख कर
तूफाँ मगर खुश होगा ज़मीन-ओ-ज़द देख कर
मुश्किल है निभ जाना ,बहुत कठिन है रस्ता
आप कीजिएगा ,कोई भी ,अहद देख कर
ऐसा नहीं है कि कोई करे क़र्ज़ से तौबा
ले क़र्ज़ मगर खुद की आमद देख कर
खुद को अब पस-ए-आईना बिठा कर देख लें
तब यकीन सा हो जाएगा शायद देख कर
क्या दौर अब आ गया है कि शहर भर में
मिले आदमी को दाखिला बस सनद देख कर
देखना तो है अभी "नील" गगन के कई रंग
क्यों बैठ गए बस एक दो गुम्बद देख कर
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अहद :promise
सनद :प्रमाण लेख ,दस्तावेज