मेरे हमनशीं ,मेरे हमनवां ,तुझसे ही है मेरा जहां
मेरे बेबसी के हमसफ़र ,तुझसा न कोई मेहरबांमेरे हमनशीं ,मेरे हमनवां ...
किस नाम से मैं आवाज़ दूं ,ख़्वाबों को क्या परवाज़ दूं
तू है दीवाने शहर में ,दर्दों को कैसे कर दूं बयान
मेरे हमनशीं ,मेरे हमनवां ...
बगिया भी देखो महक रही ,चिड़िया भी देखो चहक रही
पर बागवाँ उदास है ,जो तू नहीं है साजना
मेरे हमनशीं ,मेरे हमनवां ...
रातें वीरानी हो गयीं ,कातिल ज़वानी हो गयी
ये है मुहब्बत की सजा ,या दर्द -ऐ -दिल का इम्तेहाँ
मेरे हमनशीं ,मेरे हमनवां ...
जब भी कोई ख़त आता है ,इक आस सा जग जाता है
वो है नहीं मौजूद पर ,दिल में उन्ही का है निशाँ
मेरे हमनशीं ,मेरे हमनवां ...
है अजनबी हर रास्ता ,बेगानों से है वास्ता
पर वो बसे हैं रूह में ,हैं राहबर ,हैं रहनुमा
मेरे हमनशीं ,मेरे हमनवां ...
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (02-01-2015) को "ईस्वीय सन् 2015 की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा-1846) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
इसी कामना के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपको सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....!!
ReplyDeletenice gazal...mere blog par bhi aapka swagat hai.
ReplyDeleteiwillrocknow.blogspot.in
aap sabhi ka bahut dhanyvaad
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