Monday, November 30, 2015

कुछ देर !

कुछ देर रुक, मुझको  जाना ही होता 
ना दीवाना गर,शायराना ही होता 

गँवाने  का मतलब गँवाना  ही होता 
पाने का मतलब भी पाना ही होता 

हमें हार जाने  की ख्वाईश तो  होती 
तुम्हे जब हम को  हराना ही होता  

तेरे हक़ में मयखाने होते  ये सारे 
मेरे  हक़  में टूटा पैमाना   ही होता 

यूँ सोचता है ये दिल का परिंदा 
वो पहले पहल का ज़माना  ही होता 


Wednesday, November 11, 2015

वक़्त



वक़्त  से कुछ मोहलत लेकर आ जाना 
राहत हो , हैरत लेकर , आ जाना 

 कोई शर्त रखे क्या ,दिल के आँगन  में 
पहले सी ,आदत लेकर आ जाना  

रंग भरें, आ जा ,कुछ मेरा, कुछ तेरा  
मिट्टी  की मूरत  ले कर  आ जाना 

ईंटों  के  जंगल का  मुखरा मुस्काये 
भोली सी सूरत लेकर  आ जाना 

Sunday, November 1, 2015

उम्मीद

होंगे वहीँ शायद  रेत पर बने हमारे कदमो के निशाँ
जिसे हमने ढक दिया  था इक पत्थर के नीचे... 

लहरों में भी इतनी दया होती है कि वो  दिलवालों को अलग नहीं करते ....... 

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...