Monday, November 30, 2015

कुछ देर !

कुछ देर रुक, मुझको  जाना ही होता 
ना दीवाना गर,शायराना ही होता 

गँवाने  का मतलब गँवाना  ही होता 
पाने का मतलब भी पाना ही होता 

हमें हार जाने  की ख्वाईश तो  होती 
तुम्हे जब हम को  हराना ही होता  

तेरे हक़ में मयखाने होते  ये सारे 
मेरे  हक़  में टूटा पैमाना   ही होता 

यूँ सोचता है ये दिल का परिंदा 
वो पहले पहल का ज़माना  ही होता 


No comments:

Post a Comment

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...