एक सा नहीं दिखता चेहरा हर आईने में
पाया है रंग और भी गहरा हर आईने में
रोको नहीं सफर कि सहरा बहुत बड़ा है ,
देखा किया बहुत है ,पहरा हर आईने में
वो टुकड़ा तुम्हारे दर्श में ही,होगा कहीं छुपा
नादाँ हो ढूंढते हो वही टुकड़ा हर आईने में
गौरवशाली है ये धरती हम करते हैं इससे प्यार दिल को दिल से जोड़ना सिखाये हमारा प्यारा ये बिहार हम अलग भले हों यारों एक हमारा भारत है मिलकर हम सबको रहना है देश को इसकी जरूरत है....जय बिहार...जय भारत
मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...
आपने लिखा...
ReplyDeleteकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 26/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 284 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
Dhanyvaad kuldeep ji,bahut aabhaar mayank daa
ReplyDeleteनीलाशं की आइना सैकड़ों अर्थ संजोये कविता,आपने चुन कर सराहनीय साहित्य सेवा में हैं ।
ReplyDeleteलाजवाब शेर ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छा लिखा
ReplyDeleteKamlesh ji,digambar ji,rashmi ji ,mahesh ji aap sabhi ka bahut aabhaar
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