है उम्मीदें दामन में ,दर्द का न अब कोई फ़साना होगा
न होगा इतेफाक ही कोई ,न अब कोई बहाना होगा
इम्तेहान हो कोई भी , तयार हैं हम दिल -ओ -जान से
मुद्दतों बाद अपना भी ,अब कोई ज़माना होगा !!
है अजनबी शहर तो क्या ,हर दिल ही अपनी मंजिल है
भीड़ में खोते नहीं , ऐसे दीवानों की ये महफ़िल है
है सफ़र पे आज अपने साथ फिर से ख़ुशी
गुलशन अपने यारों का ,न अब कभी वीराना होगा !!
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