जब तक रहे
किसी का इंतज़ार आँखों में
और रहे एक पुकार
और रहे एक पुकार
खुद की साँसों में
तब तक ही ज़िन्दगी
तब तक ही ज़िन्दगी
ज़िन्दगी कहलाती है
वरना क्या रखा है
वरना क्या रखा है
फजूल की बातों में ...
जो तुम नहीं थे
जो तुम नहीं थे
तो तेरी जुदाई संग थी
बेपरवाह ज़माने में
बेपरवाह ज़माने में
मेरी खुदाई संग थी
और क्या नाम दूं
और क्या नाम दूं
इस मंज़र को
प्यार ही तो है
प्यार ही तो है
जो जागता है सुनी रातों में ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-06-2017) को
ReplyDelete"प्रश्न खड़ा लाचार" (चर्चा अंक-2640)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक