जाग उठो ,अब स्वप्न लोक से
जाओ ,उपवन की महक की ओर
सूर्य खड़ा है मुस्कुराता ,देखो
चलो तुम भी फलक की ओर
मन को रंग लो सु विचारों से
न जाओ बाह्य धनक की ओर
उजाला दिल में ही कर लेना
नहीं देखो आभूषण की चमक की ओर
संगीत बनाओ सुरमई सुमधुर
जाओ पंछियों की चहक के ओर
किसी बस्ती में गर मुफलिसी है
तुम जाना उस सड़क की ओर
ईमान से जीना,ईमान से मरना
न जाना तड़क भड़क की ओर
जाग उठो ,अब स्वप्न लोक से
जाओ ,उपवन की महक की ओर ..
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 07 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteईमान से जीना,ईमान से मरना
ReplyDeleteन जाना तड़क भड़क की ओर
बहुत प्रेरक पंक्तियाँ नीलांश जी। हार्दिक शुभकामनायें और बधाई सार्थक रचना के लिए!
बहुत धन्यवाद आप लोगों का
ReplyDeleteवाह! बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteउजाला दिल में ही कर लेना
नहीं देखो आभूषण की चमक की ओर.
.क्या ख़ूब कहा.
अच्छे अशआर।
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