बुलाया उन्होंने , गए हम दिल लेकर
और गए तो वहाँ मौसम बदल गया
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राहें बोलती हैं तू जाना पहचाना है शायर
मगर मेरे महबूब ही हमें भूल गए
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कश्ती को किनारे पर नहीं छोरना मांझी
कि शहर में अब दंगो का शोर है
तूफ़ान की शिरत तो सबको मालूम है
और गए तो वहाँ मौसम बदल गया
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राहें बोलती हैं तू जाना पहचाना है शायर
मगर मेरे महबूब ही हमें भूल गए
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कश्ती को किनारे पर नहीं छोरना मांझी
कि शहर में अब दंगो का शोर है
तूफ़ान की शिरत तो सबको मालूम है
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तेरे इश्क ने इतना मज़बूत कर दिया हमें सनम
कि गम अब दोस्त है अपनी
मौत भी आ जाए दुश्मनी को तो लड़ जायेंगे
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२-१२-२०२०) को 'मौन के अँधेरे कोने' (चर्चा अंक- ३९१३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
वाह,
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
वाह !!!
ReplyDeleteउम्दा शायरी...
वाह
ReplyDeleteबेहतरीन !
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