तू ही तो मुझे सुलाती है ,तू ही तो मुझे जगाती है
हर पल तू संग संग रहती है ,तू ही तो जीना सिखाती है
जब मद्धम सी इक पवन चले ,और गुलशन में इक गुल खिलता है
तू आँखों में आ जाती है ,रह रह कर मुझे सताती है
मेरे साँसों की हर इक सिसकी से ,गीतों की धुन बन जाती है
तू ही तो जीना सिखाती है...
फिर इक पुरवैय्या हौले से ,दरख्तों को सहला देती है
जैसे हो छनकती तेरी पायलिया ,जो मन को बहला देती हैं
फिर टिमटिम करते हुए तारें ,चंदा के संग आ जाते हैं
और रात के घने अँधेरे में ,तेरी कजरे की याद दिलाते हैं
जब इक कोर निवाला लेता हूँ ,तेरी कंगन मुझे सताती है
और मीठी मीठी तेरी बातें ,मुझे सपनो में ले जाती हैं
तू ही तो जीना सिखाती है...
बस ख़्वाबों में ही मिलना है , ऐसा ही जीना मरना है
कुछ ख्वाब अभी भी बाकी हैं ,उनको ही पूरा करना है
तुम सतरंगी सपने लेकर मेरे नींदों में आना यारा
मेरे दिल की धड़कन को सुनना और दिल में बस जाना यारा
तू गाँव गाँव ,मैं शहर शहर हम गुर्बत्त के साथी है
तू ही तो मुझे सुलाती है ,तू ही तो मुझे जगाती है
तू ही तो जीना सिखाती है ...
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बहुत ही सुंदर..!
ReplyDeleteअति सुंदर,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
bahut sundar likha hai aapne ...badhiya
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