ये ज़र्रा ज़र्रा आपसे रौशन हमारा हो गया
हिज्र के मौसम में जीने का सहारा हो गया
लोग थे परेशान यहाँ बेमौसमी बारिश से
पर तेरे दिल के नूर से , अब बहारा हो गया
मुश्किलों के साये मंडराते रहे बहुत मगर
रंग-ए-इश्क जाने जाना और गाढ़ा हो गया
हमने हर गली में तुम्हारा ही अक्श देखा है
हर गली में बदनाम भी देखो यारा हो गया
कश्ती ने मांझी को ज्यूँ मजधार से निकाला
वो किनारे पे पहुँच, बेखुदी का मारा हो गया
कभी बादलों को रेत के सेहरा में अगर देखो
तब ये समझ लेना क्यूँ खेल सारा हो गया
है "नील" की साँसों में अब भी तुम्हारे सरगम
तू उसके हसीं ग़ज़ल का इक सितारा हो गया
मुश्किलों के साये मंडराते रहे बहुत मगर
ReplyDeleteरंग-ए-इश्क जाने जाना और गाढ़ा हो गया
....सुंदर गजल।
बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लिखा है दोस्त..
ReplyDeleteये ज़र्रा ज़र्रा आपसे रौशन हमारा हो गया
ReplyDeleteहिज्र के मौसम में जीने का सहारा हो गया
वाह! खूबसूरत अशआर!
आपके यहाँ आकर अच्छा लगा।
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