बस ये अदब शेर नहीं इक दुआ है ,
मेहर से आपके मुमकिन हुआ है ,
पता नहीं कि ये कितना मशहूर है ,
पर है भरोषा की रूह को छुआ है ,
जो आग दिल में जला करती है ,
बस ये उसी का तो बढ़ता धुँआ है ,
साहिलों पे बैठ सुना करता हूँ मैं ,
ये लहर है जिसने मदहोश किया है ,
ये ही कल था ,ये ही मेरा आज है ,
ये ही तो सुनहरे कल का जुआ है ,
जीतेंगे नहीं तो रुकेंगे भी नहीं सनम ,
जब खुद रब आकर मेरे संग हुआ है
गहन अभिव्यक्ति दिल को छूती सुंदर पेशकश....!
ReplyDeleteजो आग दिल में जला करती है ,
ReplyDeleteबस ये उसी का तो बढ़ता धुँआ है ,
waah
जो आग दिल में जला करती है ,
ReplyDeleteबस ये उसी का तो बढ़ता धुँआ है ,
....बहुत ख़ूबसूरत..
जो आग दिल में जला करती है।
ReplyDeleteबस यह उसी का तो बढ़ता धुआँ है ....
बहुत खूब लिखा है आपने ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/11/blog-post_20.html
वाह ...बहुत बढि़या।
ReplyDeleteअनूठी
ReplyDeletewaah! bhaut hi acchi abhivaykti...
ReplyDeleteaap sab ke sneh ka bahut aaabhaaari hoon
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