Tuesday, November 22, 2011

बस ये अदब शेर नहीं इक दुआ है


बस ये अदब शेर नहीं इक दुआ है ,
मेहर से आपके मुमकिन हुआ है ,

पता नहीं कि ये कितना मशहूर है ,
पर है भरोषा की रूह को छुआ है ,

जो आग दिल में जला करती है ,
बस ये उसी का तो बढ़ता धुँआ है ,

साहिलों पे बैठ सुना करता हूँ मैं ,
ये लहर है जिसने मदहोश किया है ,

ये ही कल था ,ये ही मेरा आज है ,
ये ही तो सुनहरे कल का जुआ है ,

जीतेंगे नहीं तो रुकेंगे भी नहीं  सनम ,
जब खुद रब आकर मेरे संग हुआ है


8 comments:

  1. गहन अभिव्यक्ति दिल को छूती सुंदर पेशकश....!

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  2. जो आग दिल में जला करती है ,
    बस ये उसी का तो बढ़ता धुँआ है ,
    waah

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  3. जो आग दिल में जला करती है ,
    बस ये उसी का तो बढ़ता धुँआ है ,

    ....बहुत ख़ूबसूरत..

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  4. जो आग दिल में जला करती है।
    बस यह उसी का तो बढ़ता धुआँ है ....
    बहुत खूब लिखा है आपने ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/11/blog-post_20.html

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  5. वाह ...बहुत बढि़या।

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  6. aap sab ke sneh ka bahut aaabhaaari hoon

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