हो मयस्सर अब वस्ल का मौसम
ये मुमकिन नहीं है मेरे हमदम
तुम अब नज़्म को ही चख लेना
तुम उन्हें दिल में रख लेना
आईना भले संग न रहे
पर मेरी अमानत तेरे संग होगी
मेरे दिल के अफसानों में
तुम्हारे वफाओं की महक होगी
मेरा पयाम लिफाफे में है
क्यूंकि ज़माने की नज़र लग जायेगी
उसे इक नज़र से परख लेना
खोल कर एक बार उसे तुम भी चहक लेना
पीपल के पत्ते जब भी गिरते हैं
लगता है तेरे घुँघरू की झनक है
मेरे आँगन में है एक आम का पेड़
उसके मंज़र तेरे बालियों से हैं ..
उन्हें देख कर तेरी दुआएं याद आती हैं
वो मासूम सी फिजाएं बहुत तडपाती हैं
उन्ही लम्हों को आज चुन रहा हूँ
बाया सा एक नीर मैं भी बुन रहा हूँ
तेरे सपनो के पंछी उड़ते रहे
साड़ी कायनात में झूमते रहे
गर थक जाएँ कभी सफ़र में वो
तो उन्हें प्यार से उस नीर में रख देना ..
हो मयस्सर अब वस्ल का मौसम
ये मुमकिन नहीं है मेरे हमदम
तुम अब नज़्म को ही चख लेना
तुम उन्हें दिल में रख लेना ..
संवेदनशील रचना अभिवयक्ति.....
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