बेचैन साँसों को कोई सरगम बनाता है
मेरे तन्हाई को ही मेरा हमदम बनाता है
किसका होना उसे मुसल्लम बनाता है
किसका नहीं होना उसे बेदम बनाता है
है वही चारागर गुरबत्त के मारो का
जो दर्द को पी कर मरहम बनाता है
इंसान को ही झेलने परते हैं हर लम्हे
वो कौन ऊपर बैठ कर मौसम बनाता है
दुश्मनी, रंजिश, जंग का सबब खंजर
इंसान को इंसान तो कलम बनाता है
खाख में मिट जाती है हर चीज़ दोस्तों
ये अना इंसान को अदम बनाता है
वाजिब जवाब कोई मिलता नहीं मगर
कौन पहेलियों मे पेच-ओ-ख़म बनाता है
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मुसल्लम :complete
अना :ego
अदम :nothing
पेच-ओ-ख़म:complexity
बेचैन साँसों को कोई सरगम बनाता है
ReplyDeleteमेरे तन्हाई को ही मेरा हमदम बनाता है....खुबसूरत अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ..नीलांश जी ..
bahut sundar.
ReplyDeleteखुबसुरत अभिव्यक्ति. बेहतरीन गज़ल.
ReplyDeleteसुषमा जी ,शारदा जी ,निहार जी
ReplyDeleteआपके प्रोत्साहन का बहुत आभारी हूँ
सादर धन्यवाद
आभार अमित जी
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