पहले होती थी अब नहीं होती
बात अब बेसबब नहीं होती
इससे बिछड़ा तो तीरगी को जाना
घर के आंगन मे शब नहीं होती
रस्म-ओ-राह दुनिया के खिलौने है
यहाँ तो , कोई अदब, नहीं होती
हर इक तमन्ना बुझ जाती है
यहाँ आकर के तलब नहीं होती
वो हुनर भी तब खो जाती है
जूनून दिल में जब नहीं होती
घर से लौटे न कोई "नील" कभी
ये ख्याल दिल में कब नहीं होती