इंतज़ार-ए-शाम में हम सुबह को भूल गए
कटघरा ,मुंसिब और जिरह को भूल गए
याद रह गया उन महफिलों का दौर बस
और इस दुनिया की हर जगह को भूल गए
अपना भी अंदाज़-ए-ज़िन्दगी का था अजीब
आपको भूलने की हर वजह को भूल गए
आशनाई थी ही ऐसी जब मिले खुल कर मिले
रस्म-ओ-रिवाज़-ओ-दूरियां हर गिरह को भूल गए
"नील" अपनी धुन में हम ग़ज़ल लिखते रहे
होने वाले हादसे और हर गिलह को भूल गए
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गिलह: blame
जिरह:proceedings in court by a lawyer
मुंसिब :judge
आशनाई : love
गिरह :बन्धन
याद रह गया उन महफिलों का दौर बस
ReplyDeleteऔर इस दुनिया की हर जगह को भूल गए ..
प्यार का बुखार सिर चढ़ता है तो ऐसा ही होता है ...
लाजवाब शेर ...
आपका बहुत शुक्रिया दिगम्बर जी
ReplyDeleteआभार