हर डगर हर रास्ता, हाज़िर जवाबी है
आईना हैरान है ,चेहरा किताबी है !
क्यों नहीं सुने है ,आह-ओ-फ़रियाद
क्या खफा मुझसे, मेरा खुदा भी है ?
जो हमें कहते रहे थे हुनर वाला
उनकी अदालत में ही ,अब हुनर वादी है !
जाते जाते देखते जाना मेरी दहलीज़
हमने चौखट पर दीपक जला दी है
जब आप रुख को देख के मिजाज़ भाँप लें
तो भला न होने में भी क्या खराबी है ?
मेहनत से संभाला है इक फूल को अब तक
कि पंखुरी अब भी नयी सी है ,गुलाबी है
कहना कि जियें शायरों से बिना ग़ज़ल
ये तो जनाब उन पर बहुत बेनियाज़ी है
मंजिल पे पहुँच कर देखा है अपना हश्र
दरवाज़े पे ताला है ,न कोई चाभी है
मोहरा बना के देते हैं दिलासा निजाम का
जलवागरों की भला ये कैसी बाज़ी है
क्या ये चर्चा है ज़रूरी ,क्या चीज़ किसकी है
क्या ये कम नहीं कि जो है आधी-आधी है
काग़ज़ कलम दवात का बंदोवस्त कर दो
है शौक़ स्याही से भरूँ ,तश्वीर सादी है
गर बूँद भर ख़ुशी मिले ,सागर को भुला दूँ
क्या फ़िक्र फिर ग़म-ऐ-हयात बेमियादी है
कल खिलौना टूटने का ग़म ही नहीं था
बचपन छिना जब से, ये दिल एहतियाती है
जाते जाते सोचते जाएगा फिर राही
इक सोच बुझ गया है ,इक ख्वाब बाकी है
ये लहू कतरा नहीं है आतिश है इसमें "नील"
है राख का कुनबा ये जिस्म,इंकलाबी है
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वादी : one who pleads for something
बेनियाज़ी :cruelty
बेमियादी :limitless
हयात :life
एहतियाती :taking precautions
निजाम:power,rule
आतिश :fire
मेहनत से संभाला है इक फूल को अब तक
ReplyDeleteकि पंखुरी अब भी नयी सी है ,गुलाबी है ..
वाह क्या लाजवाब शेर है ... मुद्दतों तक ये फूल गुलाबी ही रहे ...
पूरी गज़ल हट कर कहे गए शेरों की लड़ी है ...
आपका बहुत आभार दिगम्बर जी
ReplyDeleteग़ज़ल की सराहना करने के लिए
कोशिश करता रहूँगा