पहले होती थी अब नहीं होती
बात अब बेसबब नहीं होती
इससे बिछड़ा तो तीरगी को जाना
घर के आंगन मे शब नहीं होती
रस्म-ओ-राह दुनिया के खिलौने है
यहाँ तो , कोई अदब, नहीं होती
हर इक तमन्ना बुझ जाती है
यहाँ आकर के तलब नहीं होती
वो हुनर भी तब खो जाती है
जूनून दिल में जब नहीं होती
घर से लौटे न कोई "नील" कभी
ये ख्याल दिल में कब नहीं होती
बहुत खूब ... सभी शेर लाजवाब ... सीधे अर्थ लिए ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
रंगों के पर्व होली की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामंनाएँ!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल 26/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है ,होली की हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
ReplyDeleteदिगम्बर जी आपका बहुत आभार
ReplyDeleteबहुत आभार मयंक दा ,
बहुत शुक्रगुज़ार हूँ राजेश जी
सभी को होली पर्व की शुभकामनायें