जहान -ए-फिरदौस का अब कोई भरम ना दे
ए खुदा !क्या हो गया ?, कि दर्द कम ना दे ?
दो पल में बदल जाए ,बस वो मौसम ना दे
ये कब किया था पैरवी की हमको ग़म न दे
तू न बता कि कितने काँटे हैं राहों में
जा आज़ाद किया तुझको , कोई मरहम ना दे
शेख, रोक मस्जिद में हमें जाने से लेकिन
ये तो बहुत ज़ुल्म है , जो तू कलम ना दे
ये ज़िन्दगी बस साँस लेना भर तो है नहीं
गर तू खुदा है, सुन ,ऐसी साँसों को दम ना दे
मैं सोचता हूँ कैसे कोई खुद को समझेगा
तू उलझने ना दे ,अगर रंज-ओ-अलम ना दे
हाँ कोई नहीं तू तोड़ अब रोज़ कुछ हिस्सा
मेरे ख्वाब को एक दम से, मौला !अदम ना दे
निकले मगर कलम से स्याही की कुछ बूँदें
है जीस्त एक इम्तेहाँ ,तू आखें नम ना दे
चलता है ए खुदा तो चल काफिर के साथ तू
यूँ साथ अपने "नील" का बस, दो कदम ना दे
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फिरदौस :heaven
अदम :annihilation,destruction
अलम :व्यथा
जीस्त :life
काफिर :atheist
khoobsurat panktiyan:
ReplyDeleteये ज़िन्दगी बस साँस लेना भर तो है नहीं
गर तू खुदा है, सुन ,ऐसी साँसों को दम ना
-Abhijit (Reflections)
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार...!
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सुखद सलोने सपनों में खोइए..!
ज़िन्दगी का भार प्यार से ढोइए...!!
शुभ रात्रि ....!
आभार अभिजित जी
ReplyDeleteशुक्रिया अशोक जी
आभार मयंक दा
धन्यवाद
काफी दबंगई शैली में शायरी करतें है साहब !
ReplyDeleteलिखते रहिये
गज़ब के शेर हैं .. लाजवाब ...
ReplyDeleteधन्यवाद मजाल जी
ReplyDeleteआभार दिगम्बर जी