उर में मधुस्वप्न ,सिंचित होगा
आह्लादित तब ,शोणित होगा काव्य तब ही समुचित होगा
जब मन तक आरोहित होगा
पूछो क्या अवशोषित होगा
और क्या कुछ प्रतिविम्बित होगा !
एक ज्वलंत है प्रश्न निरंतर
क्या सब कुछ प्रायोजित होगा ?
कुछ मुझको भी भान हुआ है
आभास तुम्हे भी किंचित होगा !
वो दो कदम न चल पायेगा
स्वयं से ही जो पराजित होगा !
कैसा है कोई ,दुःख में देखो
सुख में सब अलक्षित होगा !
मैं ढूंढूं वो जगह, हो व्याकुल
जहाँ "मैं" भी तिरोहित होगा
मेरी अपनी नगरी भी होगी
कोई राजा न पुरोहित होगा
सिन्धु नहीं पर ,पथिक भर पानी
कुछ बूंदों से ही, संचित होगा
"नील" नयन भी सब कहते हैं
उनमे गगन समाहित होगा
***
उर :heart
आह्लादित :happy
शोणित :blood
समुचित :right
अवशोषित :absorbed
प्रतिविम्बित:reflected
किंचित :somewhat
अलक्षित : unnoticed
तिरोहित :disappear
बहुत अच्छे भाव है , लय पर भी काम करें।
ReplyDeleteलिखते रहिये ....
आभार मज़ाल जी ,ध्यान रखूँगा ,शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल है नीलांश जी!!
ReplyDeletedhanyvaad aapka
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