शाख के बिखरे पत्तों के नीचे जो सुखी ज़मीन है,
वो छुप गयी है
पर सब को पता है की अकाल आया था अबकी मौसम ......
समेट लो इन पत्तों को माली ...
घर पर चूल्हा आज की रात तो जल ही जाएगा .....
ये शाख तो हर मौसम साथ निभायेंगे .........
पूछना उस चौधरी से जो तुम्हारे गाँव में नयी नयी चिमनिया लगवा रहा है .....
अब जब हरे भरे जंगल कंक्रीट के काले महलों में तब्दील होंगे तो फाका करना होगा न...तुम्हे ही....
उनकी रसद आ जायेगी परदेश से ....
एक वृक्ष अपने जन्मदिन पर ज़रूर लगाएं हम सब ....
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-01-2016) को "2016 की मेरी पहली चर्चा" (चर्चा अंक-2209) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
नववर्ष 2016 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
samyik rachna ...nav varsh ki mangalkamnaaye :)
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