ईधर जाऊँ , उधर जाऊं ,कहो कैसा सफर कर लूँ
कई तो हैं तमाशे अब ,कहो कैसी नज़र कर लूँ
मुझे मिट्टी ही प्यारी है,भले मैं हूँ तेरा मज़दूर
कहो क्यों ए ज़मीं वाले , खुद को बेहुनर कर लूँ
मैं खामोश रह लूँगा ,फिर भी साँस जब लोगे
न तब भूल पाओगे ,खुद को जो शज़र कर लूँ
मुझे मालूम है फिर आसमाँ का रंग क्या होगा
परिंदा हूँ,भरोषा पँख पर खुद के, अगर कर लूँ
कल, सूरज !, न जाने कौन सी ,धूप लाये "नील"
मुसाफ़िर हूँ ,हर रास्ते को हमसफ़र कर कर लूँ
कई तो हैं तमाशे अब ,कहो कैसी नज़र कर लूँ
मुझे मिट्टी ही प्यारी है,भले मैं हूँ तेरा मज़दूर
कहो क्यों ए ज़मीं वाले , खुद को बेहुनर कर लूँ
मैं खामोश रह लूँगा ,फिर भी साँस जब लोगे
न तब भूल पाओगे ,खुद को जो शज़र कर लूँ
मुझे मालूम है फिर आसमाँ का रंग क्या होगा
परिंदा हूँ,भरोषा पँख पर खुद के, अगर कर लूँ
कल, सूरज !, न जाने कौन सी ,धूप लाये "नील"
मुसाफ़िर हूँ ,हर रास्ते को हमसफ़र कर कर लूँ