ईधर जाऊँ , उधर जाऊं ,कहो कैसा सफर कर लूँ
कई तो हैं तमाशे अब ,कहो कैसी नज़र कर लूँ
मुझे मिट्टी ही प्यारी है,भले मैं हूँ तेरा मज़दूर
कहो क्यों ए ज़मीं वाले , खुद को बेहुनर कर लूँ
मैं खामोश रह लूँगा ,फिर भी साँस जब लोगे
न तब भूल पाओगे ,खुद को जो शज़र कर लूँ
मुझे मालूम है फिर आसमाँ का रंग क्या होगा
परिंदा हूँ,भरोषा पँख पर खुद के, अगर कर लूँ
कल, सूरज !, न जाने कौन सी ,धूप लाये "नील"
मुसाफ़िर हूँ ,हर रास्ते को हमसफ़र कर कर लूँ
कई तो हैं तमाशे अब ,कहो कैसी नज़र कर लूँ
मुझे मिट्टी ही प्यारी है,भले मैं हूँ तेरा मज़दूर
कहो क्यों ए ज़मीं वाले , खुद को बेहुनर कर लूँ
मैं खामोश रह लूँगा ,फिर भी साँस जब लोगे
न तब भूल पाओगे ,खुद को जो शज़र कर लूँ
मुझे मालूम है फिर आसमाँ का रंग क्या होगा
परिंदा हूँ,भरोषा पँख पर खुद के, अगर कर लूँ
कल, सूरज !, न जाने कौन सी ,धूप लाये "नील"
मुसाफ़िर हूँ ,हर रास्ते को हमसफ़र कर कर लूँ
सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।
आपने लिखा...
ReplyDeleteकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 04/03/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 231 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
क्या बात है !.....बेहद खूबसूरत रचना....
ReplyDeleteDhanyvaad ,aap sabhi ka
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