जो ठीक लगता है कह देते हो
जैसे शतरंज हो ,और शह देते हो
क्यों छीन लेते हो तुम रात को
जब रोशनी तुम सुबह देते हो
हमें चलना था ,हम चलते रहे
तुम पथरीली सतह देते हो
मैं भूल जाऊँ ,तुम्हे परवाह नहीं
पर याद रखने की वजह देते हो
जैसे शतरंज हो ,और शह देते हो
क्यों छीन लेते हो तुम रात को
जब रोशनी तुम सुबह देते हो
हमें चलना था ,हम चलते रहे
तुम पथरीली सतह देते हो
मैं भूल जाऊँ ,तुम्हे परवाह नहीं
पर याद रखने की वजह देते हो
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-02-2016) को "प्रवर बन्धु नमस्ते! बनाओ मन को कोमल" (चर्चा अंक-2266) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Aapka dhanyvaad
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है
ReplyDeleteHindi Shayari