काग़ज़ में रात एक फिर बिता जवाब का
किस बात का चर्चा था महँगे किताब का
हर रंग से वाक़िफ़ नहीं ए ज़िन्दगी तेरी !
है खूं का रंग लाल या फिर गुलाब का ?
हमें आपके होश का क्यों इंतजार है ! ?
थामे हैं आप आज भी दामन शराब का
करता भी वो यकीन तो किस बिनाह पर
पहने थे सब नक़ाब किसी बेनक़ाब का
अब के ना तुझको छाँव की होगी तलाश "नील"
लाये हैं अब के साया उस आफ़ताब का
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (13-03-2016) को "लोग मासूम कलियाँ मसलने लगे" (चर्चा अंक-2280) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Dhanyvaad aapka
ReplyDeleteसार्थक व प्रशंसनीय रचना...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।
Dhanyvaad aapka
ReplyDeleteवेहतरीन रचना है नीलांश जी।
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ReplyDeleteAapko dhanyvaad manish ji
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