Saturday, March 12, 2016

किस बात का चर्चा



काग़ज़ में रात एक फिर बिता जवाब का 
किस बात का चर्चा था महँगे किताब का

हर रंग से वाक़िफ़ नहीं ए ज़िन्दगी तेरी !
है खूं   का रंग लाल या  फिर गुलाब का ?

हमें आपके होश का क्यों इंतजार है ! ?
थामे हैं आप आज भी दामन शराब का 

करता  भी वो यकीन तो किस बिनाह पर 
पहने थे सब नक़ाब किसी बेनक़ाब का


अब के ना तुझको छाँव की होगी तलाश "नील"
लाये हैं  अब के साया उस आफ़ताब का


7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (13-03-2016) को "लोग मासूम कलियाँ मसलने लगे" (चर्चा अंक-2280) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।

    ReplyDelete
  3. वेहतरीन रचना है नीलांश जी।

    ReplyDelete
  4. Become Global Publisher with leading EBook Publishing Company(Print on Demand),start Publishing:http://goo.gl/1yYGZo, send your Book Details at: editor.onlinegatha@gmail.com, or call us: 9936649666

    ReplyDelete

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...