Sunday, February 17, 2013

मैं जो चुप रहा तो फिर मेरी खता समझ गए

मैं जो चुप रहा तो फिर मेरी खता समझ गए 
ये वही लोग हैं जो बुत को खुदा समझ गए

हमको मिली है उम्र भर तहरीर करने की शगल 
ये दुआ थी मगर सब लोग सजा समझ गए

आप थे खामोश जब कटघरे में आये हम
आपकी गलती नहीं हम माजरा समझ गए

लफ्ज़ थे मेरे मगर ज़िक्र में कोई और था
पढने वाले पढ़ उन्हें हर वाकया समझ गए

इक कलम काग़ज़ से मिटी हर दर्द-ओ-ग़म
आज हम ज़ीस्त का ये मशविरा समझ गए

पाँव उतना ही पसारा ,थी हमारी जितनी कद
ज़ल्द ही खुद का मेरे दिल दायरा समझ गए

माँ सिखाती है हमें कई बार अब भी बा-ख़ुशी
कह चुके है हम उन्हें कि कई दफा समझ गए

खामोशियों में दब गयी है "नील" की हर नफ़स
आप उसको बिन सुने क्यों बेसुरा समझ गए

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तहरीर :composition
ज़ीस्त:life
नफ़स :breath

3 comments:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगल वार 19/2/13 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है

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  2. बहुत खूब ... अलग अंदाज़ के शेर लिखे हैं सभी ...
    लाजवाबं ...

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  3. बहुत आभार राजेश जी चर्चा मंच में स्थान देने के लिए
    बहुत धन्यवाद दिगम्बर जी
    आभार श्री राम जी

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