मैं जो चुप रहा तो फिर मेरी खता समझ गए
ये वही लोग हैं जो बुत को खुदा समझ गए
हमको मिली है उम्र भर तहरीर करने की शगल
ये दुआ थी मगर सब लोग सजा समझ गए
आप थे खामोश जब कटघरे में आये हम
आपकी गलती नहीं हम माजरा समझ गए
लफ्ज़ थे मेरे मगर ज़िक्र में कोई और था
पढने वाले पढ़ उन्हें हर वाकया समझ गए
इक कलम काग़ज़ से मिटी हर दर्द-ओ-ग़म
आज हम ज़ीस्त का ये मशविरा समझ गए
पाँव उतना ही पसारा ,थी हमारी जितनी कद
ज़ल्द ही खुद का मेरे दिल दायरा समझ गए
माँ सिखाती है हमें कई बार अब भी बा-ख़ुशी
कह चुके है हम उन्हें कि कई दफा समझ गए
खामोशियों में दब गयी है "नील" की हर नफ़स
आप उसको बिन सुने क्यों बेसुरा समझ गए
***********************
तहरीर :composition
ज़ीस्त:life
नफ़स :breath
ये वही लोग हैं जो बुत को खुदा समझ गए
हमको मिली है उम्र भर तहरीर करने की शगल
ये दुआ थी मगर सब लोग सजा समझ गए
आप थे खामोश जब कटघरे में आये हम
आपकी गलती नहीं हम माजरा समझ गए
लफ्ज़ थे मेरे मगर ज़िक्र में कोई और था
पढने वाले पढ़ उन्हें हर वाकया समझ गए
इक कलम काग़ज़ से मिटी हर दर्द-ओ-ग़म
आज हम ज़ीस्त का ये मशविरा समझ गए
पाँव उतना ही पसारा ,थी हमारी जितनी कद
ज़ल्द ही खुद का मेरे दिल दायरा समझ गए
माँ सिखाती है हमें कई बार अब भी बा-ख़ुशी
कह चुके है हम उन्हें कि कई दफा समझ गए
खामोशियों में दब गयी है "नील" की हर नफ़स
आप उसको बिन सुने क्यों बेसुरा समझ गए
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तहरीर :composition
ज़ीस्त:life
नफ़स :breath
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगल वार 19/2/13 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteबहुत खूब ... अलग अंदाज़ के शेर लिखे हैं सभी ...
ReplyDeleteलाजवाबं ...
बहुत आभार राजेश जी चर्चा मंच में स्थान देने के लिए
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद दिगम्बर जी
आभार श्री राम जी