बादा -ए-सबा नहीं बस हल्का सा झोका सही
आप मेरे हैं सनम ये भी मेरा धोखा सही
आपकी यादों से हैं रौनकें हर ईंट में
मेरा घर तनहा सही ,मेरा घर छोटा सही
आपके आने पे हमने यूँ तो सजदा ना किया
आपके जाने पे लेकिन हमने तो रोका सही
बचपना ,वो शोखियाँ ,सब लौट जाती दोस्तों
एक बार ही मगर ये भी सच होता सही
मिल जाए हल कोई, ना भी मिले तो ग़म नहीं
आपने हालात पर कुछ देर तो सोचा सही
क्या हुआ जो ईद में भी दूर हैं हर जौक़ से
क्या हुआ अब भी हम कर रहे रोज़ा सही
शोर-ओ-गुल और हाय हाय क्यों मचाएं दोस्तों
जो हुआ सब था सही ,और जो होगा सही
आपने उस पर लिखी उस नज़्म को ना पढ़ा
"नील" की काग़ज़ से लेकिन अश्क को पोछा सही
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जौक़ :taste
शोर-ओ-गुल और हाय हाय क्यों मचाएं दोस्तों
ReplyDeleteजो हुआ सब था सही ,और जो होगा सही
....बिल्कुल सच...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
मिल जाए हल कोई, ना भी मिले तो ग़म नहीं
ReplyDeleteआपने हालात पर कुछ देर तो सोचा सही ..
बहुत खूब ... दौरे गमां में इतना वक़्त मिल जाए तो बात ही क्या ...
वाह...
ReplyDeleteक्या हुआ जो ईद में भी दूर हैं हर जौक़ से
क्या हुआ अब भी हम कर रहे रोज़ा सही
बहुत सुन्दर ग़ज़ल...
अनु
बहुत आभार कैलाश जी मयंक दा ,अनु जी ,दिगंबर जी
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