ख़्वाबों से हकीकत में ,अब आया जाए
शहर गुमसुम क्यों है ,उसे जगाया जाए
मिट गया राह-ए-वफ़ा में तो गम ना कर
कोई ना लुट जाए ,
उसको बचाया जाए
पास शोहरत है तो काफिला संग है मगर
गुरबत्त की रोटियों को यूँ न भुलाया जाए
जो आइना दिखा कर अपना चेहरा छुपाये
उसके इरादों को भी ज़रा बताया जाए
नफरत से मकान जलते हैं ,इश्क से दिल
तो क्यों न अब आशिकी सिखाया जाए
सब साथ
छोड़ देते हैं कुछ दूर चलकर अगर
तो क्यूँ न अब रूह को दोस्त बनाया जाए
मातम मना तेरा कहीं बेच न दे उसे ,तो
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाए
जब तेरे मामले का मुंसिब वही कातिल है
तो मुस्लफी का अदद शोर क्यूँ मचाया जाए
जब आई मंजिल तब साहिल पे इंसा न थे
चलो,मजधार को ही दिल से अपनाया जाए
"नील" जब नज़्म तेरी आहों को परवाज़ दें
तो क्यूँ बेबसी में अश्क अब बहाया जाए