वो बोल गए इक दिन की भुला दे हम
सारे ख्वाब को लिख कर जला दे हम
आज जब वो नहीं है तो उनकी बात का फ़साना निकला
नज्मो के रूह से आज भी जलता हुआ परवाना निकला
ये सागर से भी है गहरा ,यूँ छोटा न करो दिल को
तो
आओ, रोते हुए उन चेहरों को हंसाया जाए
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाए
मखमली ख्वाब के समंदर में डूब कर देखो
क्यों न उनसे ही हसीं सरगम बनाया जाए
वफ़ा की उम्मीद में इश्क को बदनाम न कर
अश्कों से ही सही,दिल का दिया जलाया जाए
कभी फौजियों को भी सुना-सुनाया जाए
कश्ती नीलाम न हो जाए कहीं साहिल पर
ए "नील",उन,लहरों पर दाँव लगाया जाए
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteमखमली ख्वाब के समंदर में डूब कर देखो
ReplyDeleteक्यों न उनसे ही हसीं सरगम बनाया जाए
waah
मखमली ख्वाब के समंदर में डूब कर देखो
ReplyDeleteक्यों न उनसे ही हसीं सरगम बनाया जाए
bahut badhiya ... vaah
बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteवाह क्या गज़ल है. दिल को छू गयी. इस शानदार रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteवाह!!! बहुत खूब लिखा है आपने...
ReplyDeleteआप सब का बहुत आभार
ReplyDeleteसंवेदनशील अहसास बधाई
ReplyDeleteaabhaar kushwansh ji
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