लगता है तीर दिल के पार निकल गया
सुबह है अभी मगर दिन मेरा ढल गया
और गए तो वहाँ का मौसम बदल गया
लगता है ज़माने को पता चल गया था
इसलिए शम्मा से पहले परवाना जल गया
जब तगाफुल किया हुस्न को शिरत देख
तो वो खुदगर्ज़ सर-ए-आम दहल गया
ज़ीस्त को बनाया ही क्यों ठंडी बर्फ से
जो ज़रा सी गरमी से आज पिघल गया
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल अब दीखते नहीं
बेअदब जूनून बचपन को निगल गया
ग़म-गुसार नहीं अब रहा ये ज़माना भी
जो ज़रा सी गरमी से आज पिघल गया
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल अब दीखते नहीं
बेअदब जूनून बचपन को निगल गया
जिसको दी थी मुरब्बत वो ही छल गया
ये तंज ही तो है कि सब मिसाल देते हैं
कि मेरा हश्र देख ये गुलशन संभल गया
आपसे क्या कहते तश्वीर से ही बोले ,मगर
"नील "अब तो उसका भी मन बहल गया
बेहद खुबसूरत नज़्म ..
ReplyDeleteबहुत खूब.....
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल....
ये तंज ही तो है कि सब मिसाल देते हैं
ReplyDeleteकि मेरा हश्र देख ये गुलशन संभल गया
वाह क्या बात है बहुत खूब लिखा है आपने बधाई
समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
aap sabhi ke sneh ka bahut aabhaari hoon
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