सूरत से नहीं शिरत से ही पहचान है
चाँद बेदाग़ नहीं फिर क्यूँ तू अनजान है
क्या ला सकोगे चांदनी लाखों दिए जलाकर भी
गौरवशाली है ये धरती हम करते हैं इससे प्यार दिल को दिल से जोड़ना सिखाये हमारा प्यारा ये बिहार हम अलग भले हों यारों एक हमारा भारत है मिलकर हम सबको रहना है देश को इसकी जरूरत है....जय बिहार...जय भारत
मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...
सूरत न देखो सीरत को देखो ....अच्छी रचना
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -http://veerubhai1947.blogspot.com/
सादा भोजन ऊंचा लक्ष्य
स्टोक एक्सचेंज का सट्टा भूल ,ग्लाईकेमिक इंडेक्स की सुध ले ,सेहत सुधार .
अच्छा है चाँद से आप ने पहचान लगाई है
ReplyDeleteदिये क्यों लगाये कोई चाँदनी जब खुद आई है !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteलिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (02-09-2012) के चर्चा मंच पर भी की गयी है!
सूचनार्थ!
अच्छा लिखा है आपने शुभकामनायें ....
ReplyDeletepallavi ji bahut aabhaar
ReplyDeleteveeru bhai,sushil ji bahut aabhaar
mayank daa bahut dhanyavaad aapke sarahana aur protsaahann ke liye
aasha hai accha aur saarthak likhta rahunga
saadar aabhaar