पत्थरों के दरमियाँ उगे हुए इन घास पर
ज़िन्दगी चल रही है जाने किस किस आस पर
सो गया था जाने वो किस बात के अंदाज़ से ,
जागता है जाने अब किस फिक्र के एहसास पर
तुम छुपाना चाहते थे ,मगर न हो सका
तेरा ही खूं ढूँढे तुझे , अब तेरे लिबास पर
ज़िन्दगी चल रही है जाने किस किस आस पर
सो गया था जाने वो किस बात के अंदाज़ से ,
जागता है जाने अब किस फिक्र के एहसास पर
तुम छुपाना चाहते थे ,मगर न हो सका
तेरा ही खूं ढूँढे तुझे , अब तेरे लिबास पर
Very Nice.....
ReplyDeleteबहुत प्रशंसनीय प्रस्तुति.....
मेरे ब्लाॅग की नई प्रस्तुति पर आपके विचारों का स्वागत...
Dhanyavaad
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