Sunday, December 29, 2019

बस उसी प्यार से

तोहफा दिया बस ,आपके नज़र में आ गये
जैसे कि अजनबी हमारे घर में आ गये

इक दाद की उम्मीद ही नज़्म हो गयी
अशरार खुद ब खुद ही बहर में आ गये

ये हादसा ही है ,कि अब जायेंगे किधर
जो बाज़ के लहज़े कबूतर में आ गये

चलते रहे जिस तरह घर के आँगन में,
बस उसी प्यार से दफ्तर में आ गये

हर बार रहबर की तरह से मिला था "नील"
हर बार हम सय्याद  के पिंजर में आ गये

Wednesday, December 25, 2019

फुर्सत



काम से कभी फुर्सत नही माँगी
चार दिवारी सही ,छत नहीं माँगी

फूल कलियों से नजाकत नहीं माँगी
और पत्थरों से ताकत नहीं माँगी

जब आये थे तो इजाज़त नहीं माँगी
जब गये भी तो नेमत नहीं माँगी

दो चार पल की जिंदगी, है कीमती बहुत
तोहफे में इसलिये, मोहलत नहीं माँगी

महफ़िल-ऐ-अहबाब में न पेश किया रंज
मुख़ालिफ़ों से  भी राहत नहीं माँगी

यकीन कर लिया पर आमद-ऐ-वफ़ा
कोई भी सूरत-ऐ-हालत नहीं माँगी

जिस शगल में आपका मिसाल है कायम
हमने वहाँ कभी महारत नहीं माँगी

इस मुल्क के हैं, हर नफ़स देता है शुक्रिया
हमने  कोई हुकुमत-ऐ-विलायत नहीं  माँगी 

तुम्हें याद रखने की कोशिश रहेगी "नील"
कभी भूल जाने की आदत नहीं माँगी


Wednesday, December 11, 2019

माज़रा


हाथों की लकीर पर है एतबार आपको !
जाने किस नसीब का है इंतजार आपको ?

जिंदगी बाँटिये, समेटिये , समझाईये !
मौत तो हर पल करेगी बेकरार आपको !

आपकी अदायगी से बज़्म फिर ग़ुलज़ार है !
किसने कर दिया भला फिर दरकिनार आपको ?

लेना था लगा रहा कि आपको थी क्या कमी ?
देना पर रहा हिसाब किश्तवार आपको !

मुफ्त में ले जायिये बेशक गज़ल का कोई शेर !
गर नज़र आये कभी वो इश्तिहार आपको !


मुद्दत हुयी आया नजर किसको ये मर्ज-ए-सफ़र !
आया नज़र किसी ने कहा जब बीमार आपको !

आपने ही "नील" कोई फैसला क्यों न लिया ?
दिख रहा था माज़रा जो आर-पार आपको !



Saturday, December 7, 2019

हलवाही



सीधी बात है  बदल जाओ ,  मगर  बदलो  नहीं
दायरा जो आपका है उससे  परे निकलो नहीं !

दाने दाने पे लिखा है खाने  वालों का ही नाम
दाने में तो दान भी है ,   स्वाद से बहलो नहीं 

लो पिघल रहा है हिमखंड जल देने को
मोम ने दी रोशनी पर आप क्यूँ पिघलो नहीं ?

हँस कागा दोनों के विवेक का है इम्तेहान 
दूध पानी सामने है ,किसको रखो ,किसे लो नहीं

"नील" का खलिहान तेरे साथ है  लेकिन सुनो 
खुद के हलवाही पे बस यकीन रख ,पिछलो नहीं



Thursday, December 5, 2019

हिम

हिम की सतह सा है ये मन देखो
टोह  लेता ही रहे ये निर्वहन , देखो

फिर पिघल रहा है ओ  मेघों इसे सम्भालो
फिर भी चलता रहे आवागमन ! , देखो

दो बूँद पानी के स्वपन के लिये अब
हिम के शिखर का वो पतन ! , देखो

एक शीतल श्रोत सिंचित किया कर  जतन
हो रहा गंगोत्री का अवतरण , देखो

ये हिम शिखर आज सिंधु में मिला है
क्या तेज जा रहा है वो निमग्न , देखो

"नील" नभ के ओलों में भी प्रीत रस समायी
आज इस विराट हिम से मिलन देखो


मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...