Wednesday, December 11, 2019

माज़रा


हाथों की लकीर पर है एतबार आपको !
जाने किस नसीब का है इंतजार आपको ?

जिंदगी बाँटिये, समेटिये , समझाईये !
मौत तो हर पल करेगी बेकरार आपको !

आपकी अदायगी से बज़्म फिर ग़ुलज़ार है !
किसने कर दिया भला फिर दरकिनार आपको ?

लेना था लगा रहा कि आपको थी क्या कमी ?
देना पर रहा हिसाब किश्तवार आपको !

मुफ्त में ले जायिये बेशक गज़ल का कोई शेर !
गर नज़र आये कभी वो इश्तिहार आपको !


मुद्दत हुयी आया नजर किसको ये मर्ज-ए-सफ़र !
आया नज़र किसी ने कहा जब बीमार आपको !

आपने ही "नील" कोई फैसला क्यों न लिया ?
दिख रहा था माज़रा जो आर-पार आपको !



2 comments:

  1. बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी

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  2. खरी खरी बात।
    उम्दा भाव।

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