हिम की सतह सा है ये मन देखो
टोह लेता ही रहे ये निर्वहन , देखो
टोह लेता ही रहे ये निर्वहन , देखो
फिर पिघल रहा है ओ मेघों इसे सम्भालो
फिर भी चलता रहे आवागमन ! , देखो
फिर भी चलता रहे आवागमन ! , देखो
दो बूँद पानी के स्वपन के लिये अब
हिम के शिखर का वो पतन ! , देखो
हिम के शिखर का वो पतन ! , देखो
एक शीतल श्रोत सिंचित किया कर जतन
हो रहा गंगोत्री का अवतरण , देखो
हो रहा गंगोत्री का अवतरण , देखो
ये हिम शिखर आज सिंधु में मिला है
क्या तेज जा रहा है वो निमग्न , देखो
क्या तेज जा रहा है वो निमग्न , देखो
"नील" नभ के ओलों में भी प्रीत रस समायी
आज इस विराट हिम से मिलन देखो
आज इस विराट हिम से मिलन देखो
बहुत धन्यवाद आपका यशोदा जी
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