काम से कभी फुर्सत नही माँगी
चार दिवारी सही ,छत नहीं माँगी
काम से कभी फुर्सत नही माँगी
चार दिवारी सही ,छत नहीं माँगी
फूल कलियों से नजाकत नहीं माँगी
और पत्थरों से ताकत नहीं माँगी
और पत्थरों से ताकत नहीं माँगी
जब आये थे तो इजाज़त नहीं माँगी
जब गये भी तो नेमत नहीं माँगी
जब गये भी तो नेमत नहीं माँगी
दो चार पल की जिंदगी, है कीमती बहुत
तोहफे में इसलिये, मोहलत नहीं माँगी
तोहफे में इसलिये, मोहलत नहीं माँगी
महफ़िल-ऐ-अहबाब में न पेश किया रंज
मुख़ालिफ़ों से भी राहत नहीं माँगी
मुख़ालिफ़ों से भी राहत नहीं माँगी
यकीन कर लिया पर आमद-ऐ-वफ़ा
कोई भी सूरत-ऐ-हालत नहीं माँगी
कोई भी सूरत-ऐ-हालत नहीं माँगी
जिस शगल में आपका मिसाल है कायम
हमने वहाँ कभी महारत नहीं माँगी
हमने वहाँ कभी महारत नहीं माँगी
इस मुल्क के हैं, हर नफ़स देता है शुक्रिया
हमने कोई हुकुमत-ऐ-विलायत नहीं माँगी
हमने कोई हुकुमत-ऐ-विलायत नहीं माँगी
तुम्हें याद रखने की कोशिश रहेगी "नील"
कभी भूल जाने की आदत नहीं माँगी
कभी भूल जाने की आदत नहीं माँगी
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 26 दिसंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
1623...फ़ज़ाओं में दहशत की बू हो और आप प्यार की बातें करेंगे?
बहुत शुक्रिया आपका
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-12-2019) को "शब्दों का मोल" (चर्चा अंक-3562) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता लागुरी 'अनु '
बहुत शुक्रिया आपका
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