Saturday, December 7, 2019

हलवाही



सीधी बात है  बदल जाओ ,  मगर  बदलो  नहीं
दायरा जो आपका है उससे  परे निकलो नहीं !

दाने दाने पे लिखा है खाने  वालों का ही नाम
दाने में तो दान भी है ,   स्वाद से बहलो नहीं 

लो पिघल रहा है हिमखंड जल देने को
मोम ने दी रोशनी पर आप क्यूँ पिघलो नहीं ?

हँस कागा दोनों के विवेक का है इम्तेहान 
दूध पानी सामने है ,किसको रखो ,किसे लो नहीं

"नील" का खलिहान तेरे साथ है  लेकिन सुनो 
खुद के हलवाही पे बस यकीन रख ,पिछलो नहीं



4 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (09-12-2019) को "नारी-सम्मान पर डाका ?"(चर्चा अंक-3544) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं…
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  2. चिन्तनपरक सृजन ।

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