सीधी बात है बदल जाओ , मगर बदलो नहीं
दायरा जो आपका है उससे परे निकलो नहीं !
दायरा जो आपका है उससे परे निकलो नहीं !
दाने दाने पे लिखा है खाने वालों का ही नाम
दाने में तो दान भी है , स्वाद से बहलो नहीं
दाने में तो दान भी है , स्वाद से बहलो नहीं
लो पिघल रहा है हिमखंड जल देने को
मोम ने दी रोशनी पर आप क्यूँ पिघलो नहीं ?
मोम ने दी रोशनी पर आप क्यूँ पिघलो नहीं ?
हँस कागा दोनों के विवेक का है इम्तेहान
दूध पानी सामने है ,किसको रखो ,किसे लो नहीं
दूध पानी सामने है ,किसको रखो ,किसे लो नहीं
"नील" का खलिहान तेरे साथ है लेकिन सुनो
खुद के हलवाही पे बस यकीन रख ,पिछलो नहीं
खुद के हलवाही पे बस यकीन रख ,पिछलो नहीं
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (09-12-2019) को "नारी-सम्मान पर डाका ?"(चर्चा अंक-3544) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
आपका बहुत धन्यवाद
Deleteचिन्तनपरक सृजन ।
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद
Delete