इस शहर में आइनों का शबाब देखा
हकीकत से हंसीं इक ख्वाब देखा !!
काँटों के सेज सजे मिले हर मोड़ पे
मगर काँटों में मुस्कुराता गुलाब देखा !!
कई सवाल उलझे थे धागों की तरह
उंघते चेहरों में उनका जवाब देखा!!
बिक गए शज़र कौड़ियों के दाम
साँसों का कुछ अजीब हिसाब देखा!!
खामोश रातों में रतजगा करते
इक अधलिखा हुआ किताब देखा !!
सवेरा हुआ तो इल्म हुआ "नील"
कि कल रात महज़ इक ख्वाब देखा !!
बहुत ही सुन्दर ख्वाब जो रचना में पिरो दिया आपने.....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ख्वाब जो रचना में पिरो दिया आपने.....
ReplyDeletebehtareen sher shubhkaamnaye
ReplyDeleteबिक गए शज़र कौड़ियों के दाम
ReplyDeleteसाँसों का कुछ अजीब हिसाब देखा!!
...बहुत खूब!
काँटों के सेज सजे मिले हर मोड़ पे
ReplyDeleteमगर काँटों में मुस्कुराता गुलाब देखा !!...aur usise jeena sikha
बहुत उत्तम सृजन!
ReplyDeleteबढ़िया गज़ल.
ReplyDeleteबिक गए शज़र कौड़ियों के दाम
ReplyDeleteसाँसों का कुछ अजीब हिसाब देखा!!
bahut khub mubarak ho
वाह! बेहतरीन ग़ज़ल... हर एक शेअ`र तारीफ़ के काबिल है...
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत भावो से रची सुन्दर ग़ज़ल....
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