Friday, March 6, 2015

मेरी किताब खूबसूरत बेहद हो गयी

इस  तरह  पन्नो  पे  कलम  की  आमद  हो  गयी ,
मेरी  अना  भी  कहीं  जमीन  -ओ -ज़द  हो  गयी  

किसी  ने  पढ़ा  इतना  उसे   दिल -नवाजी  से 
की   मेरी  किताब  खूबसूरत  बेहद  हो  गयी 

फौजी  के  लिए  घर  कहाँ   होता  है  साहिबा
हर  रंग -ओ -बू  खनक  वही   सरहद  हो  गयी

इस  तरह  बेखुदी  ने  खुदा  से  दूर  कर  दिया
की  खुद  को  बदल   देने  की  चाह  अदद  हो  गयी

माफ़  करना  अजीजों  की  इन्सां  परेशान  है
न  जाने  कौन  सी  खलिश  उन्मद्द  हो  गयी

मेरी  माँ  ने  देखा  मुझे  सर -ए -बज़्म  हँसते
गरीब  थी   बहुत  मगर  गद  गद  हो  गयी

"नील"  आ  गयी  नदी  ,कश्ती  को  उतार  दो
सफ़र  के  लिए  जमा  बहुत   रसद  हो   गयी  

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मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...