सिखा है उसी से हमने ग़ज़लगोई भी ,
बड़ी काम की है उसकी साफगोई भी
फिर कोई पल हमने संजोई भी ,
फिर से कलम स्याही में डुबोई भी
ग़ालिब तेरे अशरार में क्या बात है ,
जो देर तक खो जाये उनमे कोई भी
आज फिर बादल आ कर के गए ,
आज फिर इक बीज हमने बोई भी
आ गया बूढ़ा ,वही प्याला दिखा
खुल गयी है उसकी अब रसोई भी
देखो हिना से तश्वीर कैसी खिल गयी
कर रहा है उसी से अब दिलजोई भी
बोलता है पन्ना पन्ना किताब का,
नील आँखें जागती हैं कि सोई भी
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साफगोई :स्पष्टवादिता
ग़ज़लगोई :ग़ज़ल कहने की प्रक्रिया
अशरार :शेर का बहुवचन
दिलजोई: दिलासा देना ,तसल्ली देना ,सान्तवना
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