सूख रही है ज़मीं ,और शज़र हो जाये
और भी ख्वाईश ,हासिल घर हो जाये
मुझसे बेहतर जान लेते ,मुझसे ही सुनकर
मैं भी हो जाता नया सा ,ये खबर हो जाये
जाने किस आवाज से वो हो जाएगा ख़ामोश ,
जाने किस एहसास से वो नामाबर हो जाये
आपको मालूम है हर पल है खुद से जंग ,
फिर भी तसल्ली को खुद में समर हो जाये
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (11-06-2016) को "जिन्दगी बहुत सुन्दर है" (चर्चा अंक-2370) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Dhanyvaad aapka
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteDhanyvaad aapka
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 08 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर!
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