हर वक़्त क्यूँ रिश्तों से भागता है कोई
क्यूँ तश्वीर दीवारों पर टाँगता है कोई
इस जहाँ में हर मोड़ पे होते हैं तजुर्बे
कहीं मिले सब कुछ दाना फाँकता है कोई
साये के परदे हि रह गए हैं दामन में
क्या नूर को भी नकारता है कोई
जब से आया है वो शहर में यारों
लगता है कि ख्वाब अब बांटता है कोई
न जाने क्या है उसका मोल ए साहब
दीवानागी को क्यूँ आंकता है कोई
हसरते मिलने की महफ़िल से रात भर
लम्हा लम्हा हर घड़ी जागता है कोई
हो न हों पूरी सुहानी ख्वाईशें दिल की
बेशक खुद में खुद को ढालता है कोई
हवाएं शाख को सहला कर चली गयीं
कहता है हँस के दिल में झांकता है कोई
ग़ाफिल है ज़माना इक अरसा गुज़र गया
गुनाहगार खुद को अब भी मानता है कोई
मुफलिसी न जाने कब से दोस्त बन बैठी
उम्मीद आँखों में फिर भी पालता है कोई
दिया जलाएगा नील आँखों के वीराने में
आज जान-ओ-दिल से पुकारता है कोई
हर वक़्त क्यूँ रिश्तों से भागता है कोई
ReplyDeleteक्यूँ तश्वीर दीवारों पर टाँगता है कोई....khubsurat gazal....
bahut aabhaar aapka sushma ji
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