Saturday, June 23, 2012

तुम मुझे आईना दिखाते रहो

अब  न  कोई  भी  दवा  लेता  हूँ ,
हंस  के  ही  दर्द  भुला  लेता  हूँ 

तुम  मुझे    आईना  दिखाते  रहो ,
मैं  तेरी  तश्वीर  बना  लेता  हूँ 

मैंने   भी  शाख   से   सिखा    है
अपनी  नज़रें  झुका  लेता  हूँ

ज़ख्म   जो  वक़्त  दे  गया  मुझको
उनको  ही  दोस्त   बना   लेता  हूँ

भर  के  कुछ  हर्फ़  में  साँसें
उनको  पन्नो  पे  सजा  लेता   हूँ

क़यामत   तो  अभी   भी   बाकी  है
थोड़ी    सी   जान  बचा   लेता  हूँ

लोग  उठाते  हैं  जाम -ए -ग़म  यारों
मैं  तो  बस  कलम  उठा  लेता  हूँ

तिनका  तिनका ही  मुहब्बत  काफी  है
नील  आँखों   में  छुपा  लेता  हूँ  

2 comments:

  1. सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

    ReplyDelete

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...