आँखों की तपिश देर तक आँखों में रहेगी
मुझ सी ही सीरतें मेरी राखों में रहेगी
तब तक ही रहेगा वजूद आपका साहब
जब तक की सच्चाई बातों में रहेगी
तुम तेग उठाओ या बारूद समेटो
कापी कलम स्याही मेरी हाथों में रहेगी
तुम देख लेना जब बयाँ होगी सच्चाई
तब उंगलियाँ सब की यहाँ दाँतों में रहेगी
युहीं अगर चुपचाप सारे देखते रहे
तो सिसकियाँ हर मोड़ और राहों में रहेगी
मैं सोचता हूँ रोज़ ही कुछ देर के लिए
महफूज़ कब ये ज़िन्दगी रातों में रहेगी
ये कहाँ सोचा था बिछड़ने के बाद "नील"
कि उनकी छवि हर वक़्त यादों में रहेगी
तुम देख लेना जब बयाँ होगी सच्चाई
ReplyDeleteतब उंगलियाँ सब की यहाँ दाँतों में रहेगी ...
बहुत खूब ... कमाल का शेर है हकीकत की बयानी करता हुवा ...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 15/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteपूरी ही ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी ...बस राखों शब्द के मायने समझ नहीं आये ...
ReplyDeletebahut dhanyavaad digambar ji
ReplyDeletebahut aabhaar rajesh ji rachna ko sarahane aur charch manch mme prastut karne ke liye
aabhaari hoon mayank da
bahut shukriya sharda ji
मैं सोचता हूँ रोज़ ही कुछ देर के लिए
ReplyDeleteमहफूज़ कब ये ज़िन्दगी रातों में रहेगी
न जाने कब होगा यह वैसे आज को हालात हैं उन्हें देखते हुए तो नहीं लगता की ऐसा भी होगा कभी...सारगर्भित अभिव्यक्ति
dhanyavaad pallavi ji
ReplyDeleteaasha hai haalaat sudherenge