अपनी धुन में रहने वाले ये तो बता तेरा नाम है क्या
जुर्म की कोई नयी सजा है या फिर एक ईनाम है क्या ?
कूचा कूचा ,ज़र्रा ज़र्रा ,रफ्ता रफ्ता ,घड़ी घड़ी
मत पूछो यारों राही का, भी कोई अंजाम है क्या ?
एक मेरा कोर सा काग़ज़ ,एक तेरी नन्ही सी कलम
स्याही भरना,लफ्ज़ पिरोना, इस से इतर कोई काम है क्या ?
ए दूर से आने वाले पंछी ,ओ चूं चूं गाने वाले पंछी
ये तो बता दे ,पास तेरे ,घर का कोई पयाम है क्या
आलम था कुछ ऐसा ही ,और था ऐसा दीवानापन
कि न दिन की कोई खबर रही ,न सोचा कि शाम है क्या
फौजी सरहद पे जीता है ,रोता ,हँसता ,मरता है
कोई भी मौसम हो उनकी दुनिया में आराम है क्या
सोने की कीमत है साहिब ,मिट्टी का कोई मोल नहीं
जीते मरते इस माटी में इसका कोई दाम है क्या
पैमाना तू मत दे साकी,हमें ज़िन्दगी काफी है
पीने वाले क्या समझेंगे ,कि इसकी दो जाम है क्या
रहती है क्यों अब खुद से अनजानी सी आँख मेरी
"नील" तरसती आँखों में ख़्वाबों का निजाम है क्या
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निजाम:rule
बहुत आभार मयंक दा
ReplyDeleteआपको भी बहुत शुभकामनायें