इस शहर में ईमान ऐसे मर गया
इक मसीहा क़त्ल होके घर गयाज़ुल्म की खेती तो सर -ए -आम है
गोदाम में अनाज लेकिन सड़ गया
कातिल बन गया है मुनसिब देख लो
लोग कह रहे हैं कि वो सुधर गया
तुम मायने देखो न दोस्त ग़ज़ल का
ये क्यूँ कहते हो कि इसका बहर गया
क्या फ़राज़ क्या ग़ालिब मोमिन-ओ-फैज़
आज नील पूरे दिल से सबको पढ़ गया
ज़ुल्म की खेती तो सर -ए -आम है
ReplyDeleteगोदाम में अनाज लेकिन सड़ गया ..
बहुत कमाल का शेर ... सच कहा है देश की हालात पे लाजवाब टीका ...
आपका बहुत आभार दिगम्बर जी
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