ख्वाब देखती हैं आँखें ,ख्वाब सी है ज़िन्दगी
अपनी तो कापी कलम किताब सी है ज़िन्दगी
कभी है महफिलों का शोर ,है जश्न-ए -दुनिया
कभी खामोश लबों की जवाब सी है ज़िन्दगी
खुश्बू भी है ,खार भी है ,जीत है ,हार भी है
लगता हैं क्यूँ हर घड़ी गुलाब सी है ज़िन्दगी
कैसी है ये खलिश ,कैसी तमन्ना है जवाँ
जाने किस किस जुर्म की हिसाब सी है ज़िन्दगी
छुप नहीं सकता है यारा तेरे रुख से माजरा
कहते हो फिर भी कि लाजवाब सी है ज़िन्दगी
ओढ़ लेता है इसे हर आदमी मौत तक
उस खुदाया से मिली नकाब सी है ज़िन्दगी
सहर से ये शाम तक है दौड़ती राह पर
जलती बुझती एक आफताब सी है ज़िन्दगी
बिन पिए ही हो गया है नशा मुझे देर तक
ऐसी अलबेली इक शराब सी है ज़िन्दगी
खुद से लडती हुई है नील ये इक दास्ताँ
कुछ अलग सी एक इन्कलाब सी है ज़िन्दगी
खुश्बू भी है ,खार भी है ,जीत है ,हार भी है
ReplyDeleteलगता हैं क्यूँ हर घड़ी गुलाब सी है ज़िन्दगी ..
बहुत खूब ... जीवन गुलाब ही तो है ... फूल भी हैं ओर कांटे भी ... लाजवाब शेर ...
bahut aabhaar digambar ji
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