जंग के मैदान के बाहर है अफवाह बहुत
कि जंग लरने को मिलते है तनख्वाह बहुत
इक छोटी सी चोंच और उसमें दो दाने
रहे चाहत तो मिल जाते हैं राह बहुत
शेख जी क्या जरूरत है पेशगी की कहें
आपके तस्सवुर में खो जाते हैं गवाह बहुत
तुम जो होते हो तो लोग बदल जाते हैं
तुम जो न हो तो बढ़ जाता है गुनाह बहुत
चाँद खामोश है क्यूँकि है अमावस "नील"
सुबह होने से पहले रात होती है स्याह बहुत